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हम घिरे हैं गिरे नहीं

hum ghire hain gire nahin

पंकज सिंह

अन्य

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पंकज सिंह

हम घिरे हैं गिरे नहीं

पंकज सिंह

और अधिकपंकज सिंह

    वह कौन है, मेधा? मोमबत्ती ढूँढ़ती हुई अंधकार में

    अपनी ही प्रति-छाया-सी

    किसी गोपनीय शाप का दूसरा सिरा थामे

    ख़ुद को भरसक बचाना है खीझ से उदासी के ज़हर से

    रहने दो, रहने दो अभी, मैं कहता हूँ

    अँधेरे में व्यर्थ की टकराहटों का, चोट खाने का अंदेशा है

    रहने दो फ़िलहाल रहने दो

    हमें इंतज़ार की ताक़त सिरजनी चाहिए

    ज़िंदा रह पाने की जुगत करते हुए धीरज के संग

    कई बार चमकता है वही धीरज बीजगर्भित

    नींद की राह में

    किसी दुर्लभ स्वप्न के आरंभ की मानिंद

    हम एक दूसरे को प्रशांत स्वर में बताते हैं

    कि हम घिरे हैं

    गिरे नहीं

    डर और लालसा की बजबजाहट में।

    स्रोत :
    • रचनाकार : पंकज सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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