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हुआ यह

hua ye

बेला अख़्मादूलीना

अन्य

अन्य

और अधिकबेला अख़्मादूलीना

    हुआ यह कि जन्म से सत्ताईस वर्ष बाद

    प्राप्त हुआ मुझे सौभाग्य रहने का

    सुंदर और विस्तृत उद्यान से घिरे

    घर और परिवार की सीमाओं के भीतर।

    मैंने कल्पना की उस सच्चाई की

    जिसके साथ न्यायप्रिय प्रकृति

    देखती है मुरझाना उद्यान का

    और निर्धारित करती है नियति क्यारियों की।

    मुझे अच्छा लगता था भूल जाना दुःख और क्रोध,

    अच्छा लगता था अनभिज्ञ बने रहना विचारों और शब्दों के प्रति

    और पेड़ों की शिशु अबोधता में

    सहते रहना पराई प्रतिभा की सब चिंताएँ।

    मैं स्वस्थ हुई तुरंत घास की तरह,

    हृदय से निर्मल हर वनस्पति की तरह,

    पेड़ की तुलना में अधिक बुद्धिमान नहीं,

    ही जन्म से पहले की तुलना में अधिक जीवंत।

    रातों में मुस्करा देती थी छत की तरफ़

    इस रिक्तता में जहाँ परिचित और प्रिय तरीक़े से

    अँधकार में चमक रहा होता है जाना-पहचाना ईश्वर

    मुस्कुराना और स्वागत करना—यही होता है उसका लक्ष्य।

    निश्चित था प्राप्त होना सुख-समृद्धि का,

    इतना समीप था ईश्वर का विपुल स्नेह,

    चूमना आसान हो इसलिए बालों की लट

    सरका दी एक तरफ़ और सो ली गहरी नींद।

    लगा बहुत दिनों के लिए जैसे सदियों के लिए

    धँस गई हूँ ज़मीन के भीतर गहराई में।

    किसी को ज्ञात नहीं था—कितनी भयानक यंत्रणा

    खड़ी थी बाहर मेरे एकांत के द्वार पर!

    स्रोत :
    • पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 330)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : बेला अख़्मादूलीना
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1989

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