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सबसे पहले

sabse pahle

अतुल

अन्य

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अतुल

सबसे पहले

अतुल

और अधिकअतुल

    सबसे पहले ज़ुबान चली गई

    गूँगे ख़ामोश सब सुन रहे थे

    उसकी अगली तारीख़ में आँखें चली गईं

    कारनामे रहे और नज़र पर पर्दा रहा

    उसके बाद जब कान चले गए

    तो चीख़ों को सुनना सबने बंद कर दिया

    कुछ वक़्त नहीं गुज़रा था कि

    आत्माएँ मरने लगीं—

    अब धीरे-धीरे एक वक़्त के बाद

    जब बचाने को कुछ भी नहीं था

    सब गूँगे, अंधे, बहरे लोग लाश की तरह

    भरभराकर ताश की तरह बिछ गएँ

    समंदर के सामने रेत के बीच

    और समंदर की रेत पर दर्ज हुआ कि

    ज़ुबान की ख़ामोशी और लाशों की गिनती

    क्रमिक क्रियाएँ हैं

    यही दर्ज होना चाहिए था—

    इतिहास की किताब के पन्नों में,

    पर दर्ज हुआ किसी दूसरी किताब में

    कि कैसे अक्षमताओं के उपमान नहीं बनाए जा सकते।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अतुल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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