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बुत का हाथ

but ka haath

महमूद दरवेश

अन्य

अन्य

महमूद दरवेश

बुत का हाथ

महमूद दरवेश

और अधिकमहमूद दरवेश

    बुत का हाथ फैला हुआ—

    बुत धूप किसी जंडैल का, या किसी फ़नकार का—

    धूप और बारिश की ख़ुश आमद में नहीं

    बूढे फ़ौजियों, नए ख़ैरख्वाहों की

    बल्कि आतों-जातों से ख़ैरात माँगते

    किसी ख़ानदानी भिखमंगे के हाथ जैसा,

    इसलिए नहीं, कि फिर चल-फिर सके

    बल्कि इसलिए

    कि अबद से अज़ल तक के सफ़रख़र्च की

    भरपाई हो सके।

    बेहतर होगा इस पथरीले हाथ के लिए

    कि किसी शख़्स से वो गुलदस्ता हासिल करे

    जो उसने, बुत के पास अकेला इंतज़ार करते

    छोड़ गई औरत के लिए ख़रीदा था।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 330)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक सुरेश सलिल, कैथराइन कोहैम
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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