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फिर उसी जगह आ पँहुचा

phir usi jagah aa panhucha

अनुवाद : खड़कराज गिरी

वीरभद्र कार्कीढोली

अन्य

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वीरभद्र कार्कीढोली

फिर उसी जगह आ पँहुचा

वीरभद्र कार्कीढोली

मैं तो हिमालय देखने आया था

तुम्हारे भीतर का

भरा हुआ और पिघला हुआ

सोचा था, देखूँगा

पर ऊँचाई आँकने

नहीं आया था मैं।

मेरी यात्रा

कभी सुगम और सहज हुई हो

पता नहीं है, आज तक

सभी कहते थे—

‘मैं भी तुम्हारे साथ हूँ!’

पर आज तक मैं

अकेला ही हूँ, अकेला!

जितना ही उतारता हूँ बोझ

लदते जाते हैं उतने ही

ज्ञात हुआ है अब

बोझ जहाँ-तहाँ उतारना नहीं चाहिए था!

चला हूँ बहुत ऊँचाई तक

चलना है और भी उतना ही।

मैं तो तुम्हारे मुल्क में—आया था

बोझ ढोने

नई पीड़ा सहने

कभी हँसते, कभी-कभी रोते हुए जीएँगे

तुम्हारे ही मुल्क में

फूलेंगे, फूलेंगे

यहीं की हवा के झोंकों से गिरेंगे

यहाँ कभी भी हो, खिलेंगे

जहाँ भी हो, गिरेंगे,

सोचकर ही आया था

पर कहाँ पँहुचा, मैं फिर

कहाँ पँहुचा मैं

जहाँ से मैं

रातोंरात भागा था

फिर वहीं पँहुचा हूँ मैं

फिर वहीं...!

‘ऐसी ग़लती नहीं होगी

अब कभी मुझसे

ग़लती ही नहीं करूँगा’ कहकर

जहाँ से मैं

भागा था रातोंरात

पुनः मैं वही ग़लती दुहराने

उसी जगह पँहुचा,

फिर उसी जगह पँहुचा!

स्रोत :
  • पुस्तक : इस शहर में तुम्हें याद कर (पृष्ठ 12)
  • रचनाकार : वीरभद्र कार्कीढोली
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 2016

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