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हज़ार द्वारी कविताएँ

hazar dwari kawitayen

पंखुरी सिन्हा

अन्य

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पंखुरी सिन्हा

हज़ार द्वारी कविताएँ

पंखुरी सिन्हा

बहुत बचाया उसे मैंने, पर ज़िद्दी अल्हड

प्यार में पागल लड़की की तरह

वह उलझी रही कठिन

दुरूह बिंबों में

जिसमे क़िस्सा था

एक समूची व्यवस्था के पतन का

सभ्यता के भी पतन का

कुछ मूल्यों के ह्रास का

कुछ चिंतनशील, मनस्वी

तेजस्वी, बुद्धिमती बनती

जवान होती लड़की की तरह

वह उलझती रही अनेकार्थी, बहुलार्थी के खेल में

शोधार्थी भी बनती

वह हज़ार द्वार खोलने लगी

बनने लगी हज़ार द्वारी

सप्तवर्णा, तापसी भी

वह मेरी बेटी नहीं

मेरी कविता थी

उसे लड़ियों में पिरोते

प्रसव पीड़ा नहीं

हृदय विदारक दर्द था...

स्रोत :
  • रचनाकार : पंखुरी सिन्हा
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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