Font by Mehr Nastaliq Web

हर औरत का एक मर्द है

har aurat ka ek mard hai

दिनेश कुशवाह

अन्य

अन्य

दिनेश कुशवाह

हर औरत का एक मर्द है

दिनेश कुशवाह

और अधिकदिनेश कुशवाह

     

    कथाकार प्रमिला के लिए

    छलना कह लो, माया कह लो
    नागिन, ठगिनि, दुधारी।
    ढोल, गँवार, शूद्र पशु कह लो
    कामिनी, कुटिल कुनारी॥

    डायन या चुड़ैल कह पीटो
    अबला दीन बेचारी।
    ज़हर पिलाओ, गला-दबाओ
    अथवा करो उघारी॥ 

    सावित्री घर की मर्यादा
    सतभतरी रसहल्या।
    पति परमेश्वर की आज्ञा है
    पत्थर बनो अहिल्या॥ 

    यज्ञों में दुर्गति करवाओ 
    जुआ खेलकर हारो।
    प्रेम करे तो फाँसी दे दो 
    पत्थर-पत्थर मारो॥

    बलि दे दो, ज़िंदा दफ़नाओ 
    जले बहू की होली
    पतिबरता तो मौन रहेगी
    कुल्टा है जो बोली॥ 

    सती बने या जौहर कर ले
    डूब मरे सतनाशी।
    विधवा हो तो ख़ैर मनाओ
    भेजो मथुरा-काशी॥ 

    जाहिल-ज़ालिम आक्रांता को 
    बेटी दे बहलाओ। 
    बेटे ख़ातिर राज बचा लो
    ख़ुद भी मौज उड़ाओ॥

    कुआँ, बावली, पोखर, नदियाँ
    मर सीताएँ पाटीं
    किस करुणाकर, करुणानिधि की 
    वत्सल छाती फाटी॥

    अपनी दासी उनकी बेटी 
    अपनी बेटी उनकी।
    महाठगिनि ने पूछा मुझसे 
    ये माया है किनकी॥

    उन मर्दों में मैं शामिल 
    फिर भी कहूँ तिखार।
    हर औरत का एक मर्द है 
    लुच्चा, जबर-लबार॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : इतिहास में अभागे (पृष्ठ 40)
    • रचनाकार : दिनेश कुशवाह
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2017

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए