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ग्वालन

gwalan

अनुवाद : दिनकर सोनवलकर

इंदिरा संत

अन्य

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इंदिरा संत

ग्वालन

इंदिरा संत

और अधिकइंदिरा संत

    मेरे मन ने चाहा था

    जी भरकर रोना

    फूट-फूट रोना

    पर मेरे पलकों की गगरिया

    जमना के जल से भी नहीं भरी।

    मेरे मन ने चाहा था

    जी भरकर हँसना

    मुक्त हास्य करना

    पर राधा की फेंकी हुई कंकरिया

    जा फँसी गले में

    और कंठ ही अवरुद्ध कर गई मेरा।

    मुझे कितना कुछ कहना था

    सब-कुछ कह देना था

    लेकिन वह मुँह-जली बाँसुरिया

    सात-सात मुख वाली

    मेरे सारे स्वर निगल गई।

    दोनों ही पंख पसारे

    पक्षी की गति को धारे

    दूर-दूर उड़ना चाहा था मैंने

    किंतु पैरों की कंचन ज़ंजीरों ने

    मेरी छाया तक को जकड़ लिया बंधन में।

    इसीलिए

    हर तरह असफल हो

    कान्हा की क्रीड़ा का कंदुक बनकर ही

    मैं गहरी यमुना में कूद पड़ी

    लेकिन हाय रे दुर्भाग्य क्रूर

    वहाँ भी उस कालिया नाग ने

    आख़िरी बाज़ी भी जीत ली।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि संकलन कविता मराठी (पृष्ठ 29)
    • रचनाकार : इंदिरा संत
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1965

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