रखमाबाई की उक्त्ति

rakhmabai ki uktti

उदयन ठक्कर

उदयन ठक्कर

रखमाबाई की उक्त्ति

उदयन ठक्कर

नोटिस मिला था मुझे बड़े वकील का,

मेरे मुवक्किल के साथ आपकी हुई है शादी

बार-बार बुलाने पर भी आप आती नहीं हैं।

अब यदि आप एक हफ़्ते में उनके यहाँ नहीं पहुँची,

तो हम दायर करेंगे मुक़दमा।

जवाब मैंने लिखा कि- महाशय!

ग्यारह बरस की थी मैं, तब जो हुआ,

उसे आप शादी कहते हैं?

मैं हाँ या ना कह सकूँ, क्या ऐसी थी वो उम्र मेरी

मुझे तो अभी पढ़-लिखकर डॉक्टर बनना था,

जबकि वो... जिसे मेरा पति बताया जा रहा था,

नाम था उसका भीखाजी,

वो तो पढ़ाई बीच में ही छोड़कर उठ गया था शाला से!

मशहूर था चारों तरफ़... अपने बत्तीस लक्षणों के लिए!

जहाँ मैं हमेशा आती-जाती थी, वो ‘प्रार्थना समाज’-

नारी भी मनुष्य है, इसे स्वीकार करता था...

लेख लिखा मैंने अपने छद्म नाम से,

हिंदू पुरुष को छूट है, दूसरी करे, तीसरी करे,

जबकि नारी को अपनी शादी रद्द करने का हक़ नहीं?

पति की मृत्यु हो जाए तो भी दूसरी शादी कर सके...

इसी को आप शादी कहते है? लेकिन यह तो उम्र-क़ैद है।

मेरे पति ने कर दिया केस, हाईकोर्ट में

सुना दिया फ़ैसला न्यायाधीश ने चुटकियों में

‘वादी समझता क्या है? स्त्री बैल है या अश्व है

कि उसे घसीटकर घर ले जाएँ?

मैं वादी की माँगे रद्द करता हूँ।’

हो-हल्ला मच गया हिंदू समाज में

भाटिया महाजन में मिले, बनिया मंदिर में

संपादक ने अग्रलेख लिखा ‘केसरी’ में कि

‘लड़की ने अँग्रेज़ी सीख ली इसी का यह प्रताप!

ख़तरे में हिंदू धर्म! ‘मराठा’ ने भी लिखा

‘पति ने शादी के लिए कितना खर्च उठाया होगा,

कौन करेगा वापस यह रकम ब्याज समेत?’

ये दोनों अख़बार लोकमान्य तिलक के थे

यह बात सच होने पर भी, मानेगा कौन?

मेरा तथाकथित पति जीत गया अपील में।

अदालत ने मुझे उसके घर जाने का हुकुम दिया

मैं जाऊँ ते भी क़ैद ना जाऊँ तो भी क़ैद!

स्रोत :
  • पुस्तक : तनाव-148 (पृष्ठ 31)
  • संपादक : वंशी माहेश्वरी
  • रचनाकार : उदयन ठक्कर
  • संस्करण : 2021

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