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मौन में

maun mein

अनुवाद : आलोक गुप्ता

राजेन्द्र शाह

अन्य

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और अधिकराजेन्द्र शाह

    मौन में है लीन मेरी वाणी!

    मन में नहीं है कोई ग्लानि,

    नहीं है दु:ख।

    उद्गार के लिए भी तो खुलता नहीं है मुख।

    सरोवर-जल पर ढलती है स्निग्ध सूर्य की अमी अरुणाई।

    पंखुरी-पंखुरी में खिलता कमल,

    उड़ते विहग के शब्द छाए हैं नभोवन में,

    पंखों से आंदोलित

    तरल गति से बह रहा है पवन।

    मिलते हैं रंग, मधुगंध और गान

    लहर-लहर के रोम-रोम को

    स्पर्श कर जाती है मृदु तान!

    आँखें देखती हैं फिर भी हैं रिक्त,

    रिक्त हैं किरण।

    अवकाश, रे अपरिमेय अवकाश नीला नीला...

    जिसमें है लालिमा

    पता नहीं,

    किस अभिनव देश में जन्म दे रहा है यह मरण!

    स्रोत :
    • पुस्तक : साम्प्रत मैं चिरन्तन (पृष्ठ 161)
    • संपादक : रघुवीर चौधरी
    • रचनाकार : राजेन्द्र शाह
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 2004

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