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गोदाम में एक नज़र

godam mein ek nazar

अनुवाद : महावीरसिंह चौहाण

सितांशु यशश्चंद्र

अन्य

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सितांशु यशश्चंद्र

गोदाम में एक नज़र

सितांशु यशश्चंद्र

और अधिकसितांशु यशश्चंद्र

    आप ज़रा देर से पधारे

    इसलिए पीपल के नीचे अँधेरा कुछ गहरा हो गया, हुजूर!

    यूँ, इस जगह तो दोपहर में भी रोशनी नहीं पहुँचती।

    लाइनें तो इन लोगों ने छह-छह डलवा रखी हैं,

    तीन दाहिनी ओर, तीन बाईं ओर

    दूसरी दो पीछे हैं, रिजर्व्ड।

    करंट तो सा'ब धड़ल्ले से आता है

    आठ की आठों में सीधा उनके भीतर वक़्त, बेवक़्त।

    पावर की कोई कमी नहीं गोदाम वालों को।

    लेकिन जाने क्यो लाइट नहीं जलाते हैं ये लोग।

    हाँ, किसी-किसी रात इतनी सारी लाइटें जला देते हैं

    कि आँखे चौंधिया जाती हैं।

    यूँ तो आए दिन ये जानबूझकर रखते हैं ऐसा अँधेरा।

    अरे ज़रा सुन, मेरी बैटरी तो ला, कोठरी में से।

    वही बीयेसेफ वाली।

    हाँ साहब, बी येस एफ में था: पूरे दस साल था,

    जनाब कच्छ बॉर्डर पर था। वहीं ली थी, ये बैटरी।

    तेज़ मिजाज़ ऐसी कि अँधेरे को चमड़ी छीलकर रख देती है।

    अभी दिखाता हूँ सा’ब

    बैटरी हमारी, आँख आपकी, खिड़की गोदाम की।

    अरे भाई देख तो, कोई कोई खिड़की

    अधखुली-सी होगी, बाईं

    नहीं, तो दाहिनी, धक्का दे ज़रा, पीछे वाली,

    या तो आगे वाली।

    स्रोत :
    • पुस्तक : जटायु, रुगोवा और अन्य कविताएँ
    • रचनाकार : सितांशु यशश्चंद्र
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2022

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