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उपला

upla

नवीन रांगियाल

अन्य

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और अधिकनवीन रांगियाल

    वो जो आँगन के मुहाने पर

    जलता हुआ उपला है

    और जो घर के कोने में रखे

    सूखे ठूँठ और लंबे बाँस

    और जो धुआँ है—

    गुलाब की गंध के साथ

    कुछ ही देर में

    ये सब तुम्हारे सारे छद्म को खा जाएँगे—

    एक झटके में—

    किसी भूखे भेड़िए की तरह

    जैसे सूरज खा जाता है अँधेरा

    और छाया पूरे दिन को खा जाती है

    उपले की यह आग खा जाएगी पूरी देह

    जीवन और उसका सारा संसार

    जीने की सारी नुमाइशें छीन ले जाएगी

    घरेलू चीख़ें और बाहरी घोर आश्चर्य के बीच

    बाँस की सीढ़ी पर

    कसकर बाँध दी जाएगी—

    ठंडी नींद की एक तस्वीर

    और विदा कर दिया जाएगा उसे—

    एक उदास कोरस के साथ

    उस तरफ़

    तुम अकेले रह जाओगे अपनी लपट के साथ

    और बुझ जाओगे धीमे-धीमे—

    अंतिम प्रार्थना की तरह

    और फिर सोए रहोगे रात भर

    भूरे बिस्तर पर बग़ैर किसी शरीर के

    वापसी में सिर्फ़ इत्मिनान होगा—

    हल्का और थोड़ा-सा मुस्कुराता हुआ

    जो इस तरफ़ आकर पसर कर बैठ जाएगा दुनिया में

    उसी जगह पर जहाँ तुम्हें कसकर बाँधा गया था।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नवीन रांगियाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए द्वारा चयनित

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