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मैं तो अरे! करके रह गया

main to are! karke rah gaya

नवीन सागर

अन्य

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नवीन सागर

मैं तो अरे! करके रह गया

नवीन सागर

और अधिकनवीन सागर

    अरे!

    सब कुछ समझ से परे

    कोई क्या करे!

    क्या करे वह जो सुन रहा है अंतर्तम की आवाज़

    सीधे सरल जीवन की चाह

    आह!

    ओछेपन पर सर्वत्र वाह! वाह।

    हत्यारों पर आसमान से फूल झर रहे हैं

    जो मर रहे हैं उनके पास

    कोई नहीं है

    माँ स्तंभित है कब से रोई नहीं है

    घरों में दुःख अट रहा है

    अटूट बाज़ारों में सुख बिक रहा है

    ईश्वर से बड़ा यह कौन दिख रहा है जो

    हमारी दैनंदिनी लिख रहा है

    जो फिंकना था वह सहेजा गया है

    जो रखना था वो फिंक रहा है

    अरे!

    मैं तो अरे करके रह गया!

    स्रोत :
    • पुस्तक : हर घर से ग़ायब (पृष्ठ 67)
    • रचनाकार : नवीन सागर
    • प्रकाशन : सूर्य प्रकाशन मंदिर
    • संस्करण : 2006

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