Font by Mehr Nastaliq Web

बहन

bahan

विजय राही

अन्य

अन्य

और अधिकविजय राही

    एक घंटे में लहसुन छीलती है

    फिर भी छिलके रह जाते हैं

    दो घँटे में बर्तन माँजती है

    फिर भी गंदे रह जाते हैं

    तीन घँटे में रोटी बनाती है

    फिर भी जली, कच्ची-पक्की

    कुएँ से पानी लाती है

    मटकी फोड़ आती है

    जब भी ससुराल आती है

    हर बार दूसरी ढाणी का

    रास्ता पकड़ लेती है

    औरतें छेड़ती हैं तो चुप हो जाती है

    ठसक से नहीं रहती बेमतलब हँसने लगती है

    खाने-पीने की कोई कमी नहीं है

    फिर भी रोती रहती है

    काँई लखण कोनी थारी बहण में

    यह सब

    बहन की सास ने कहा मुझसे

    चाँदी के कडूल्यों पर हाथ फेरते हुए

    जब पिछली बार बहन से मिलने गया

    मैंने घर आकर माँ से कहा

    बहन पागल हो गई है

    सास ने उसको ज़िंदा ही मार दिया

    कुएँ में पटक दिया तुमने उसे

    माँ ने कहा

    लूगड़ी के पल्ले से आँखें पोंछते हुए

    तू या बात कोई और सू मत कह दीज्यो

    म्हारी बेटी ख़ूब मौज़ में है!

    स्रोत :
    • रचनाकार : विजय राही
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए