गोबर हाथ

gobar hath

शरद रंजन शरद

शरद रंजन शरद

गोबर हाथ

शरद रंजन शरद

किसी ने थामी

सिर्फ़ एक उँगली

जो राह में ही छूट गई

किसी ने पकड़ी कलाई

मुड़ गई जो

थोड़ी देर बाद

कोई हद से बढ़ा

तो कंधे तक पहुँचा

छुए सभी ने

देह और चाह के

अलग-अलग हिस्से

किसी की कामना

कि वह मन को

उसकी जड़ से गहे

आत्मा की नींव तक उतरे

पर सब छुआ-अनछुआ

रह गया यूँ ही

अलग होते वक़्त

कुछ साथ नहीं रहा

ऐसी छूटी नहीं निशानी

कि देखकर चुपचाप

कोई कर ले मिलान

ढूँढ़ ले अपनी छाप

अब भी परती ज़मीन

और पुरानी भीत से सटकर

सुस्ता रहे कंडों पर

शरारती बच्चे रख रहे हैं हाथ

एक स्त्री टिकाए हुए है आँख

छोड़कर अपनी हथेलियों की रेख

देख सिहरती उपले का भाग!

स्रोत :
  • रचनाकार : शरद रंजन शरद
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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