गीतों से कुछ यादें

giton se kuch yaden

आशीष त्रिपाठी

आशीष त्रिपाठी

गीतों से कुछ यादें

आशीष त्रिपाठी

कहीं भी, कभी भी

राह चलते या ठहरे में

खुलती सुबह

या गहराती शाम से किसी क्षण में

अचानक शुरू होता है कोई गीत

निस्तेज तारों को

छूते हैं सुर

चूमते हैं शब्द

धीरे-धीरे एक गीत की चमक से

भर उठते हैं तारे

जीवित होती जाती है एक वीरान

सोई हुई दुनिया

रोशनी से भर उठते हैं यारबाज रंग

ठहरी हुई चीज़ों में होती है जुम्बिश

पुरानी कहानी दृश्यावलियों में बदलने लगती है

प्रकाशित होता जाता है

तुमसे मिलने के क्षणों का सब कुछ

कड़ी उमस भरी धूप में छाँव का सुख

पनचुछही और ठंडी चाय की सबसे अच्छी चुस्कियाँ

बातों की कुल्हाड़ी से

कटते जाना समय के पहाड़ का

कुछ लोगों का घूरना बिदुराते

सड़ी निबौलियों की बू से भरी हवा में

बेला की ख़ुशबू

उमस भरी बारिस की उस शाम

चट्टान पर चढ़कर बादलों से

नेनूँ के लोंदे की तरह खेलने की इच्छा

सैकड़ों फुट ऊपर से गिरती नदी का

एकाएक चुप हो जाना

और निहारने लगना मुझे

बारिश में छत पर लटकी

पानी की बूँदों से मेरे जीवन का

बहने लगना

ढेर सारा कहने के लिए चली नदी को

स्वयं ही बाँध लिए जाने की बेचैनी

ताज़े लिखे काग़ज़ की ख़ुशबू

रोशनी के टुकड़े सभी क्षणों को

ममता से भरते हैं

इन गीतों में सुनाई देती है

आज भी

तुम्हारी ही आवाज़

मेरी आवाज़ के साथ

गीतों के पूरा होने के बाद का सूनापन

गाढ़ा होता गया है धीरे-धीरे

स्रोत :
  • रचनाकार : आशीष त्रिपाठी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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