निर्धन लड़की के उलाहने

nirdhan laDki ke ulahane

दीनानाथ वली 'अलमस्त'

दीनानाथ वली 'अलमस्त'

निर्धन लड़की के उलाहने

दीनानाथ वली 'अलमस्त'

यह रूप, यह उठता हुआ यौवन, किस कारण दिया था तुमने मुझको—

हे देव लेना क्या था मुझे जन्म लेने से ही

नष्ट करना था अपना समय मुझे जन्म देना

हे देव लेना क्या...

मानो मरुस्थल में तुमने पुष्प खिला दिया—

पुष्प खिला दिया परंतु उसे फिर भुला दिया

सिंचाई कहाँ है और छाया तरु की

माली है कोई, बुलबुल कहीं है

यहाँ दिखाना पड़ता है पहले माल बुलबुल को

हे देव...

इससे अच्छा यही था कि रखा होता मुझे अपने चरणों की सेवा के लिए—

यहाँ पुष्प अर्पित किए जा रहे हैं अग्निकुंडों में

और चढ़ाए जाते हैं पत्थर के टुकडों पर—

और जब कुम्हला जाएँ बहाए जाते हैं बहती नदी में

इन्हें मन बहलाना है किसी प्रकार

हे देव...

शशि-सा मुझको बना दिया पर मुझे उससे मिला क्या—

और ज्यों ही मेरा यौवन निखर आया

मैं ससुराल के विचार में घुलने लगी—

और निर्धनता के दाग़ को सहलाने लगी

यह यौवन क्या दिलाया जिसमें हो दाग़ सहलाना

हे देव...

इससे अच्छा यही कि रखा होता मुझे तारकों में—

मैं देखा करती लेती मौज इस जगत के झमेलों का

मायका ससुराल कोई झंझट रहता—

आने का ही जाने का जंजाल रहता

मैं अपनी वहीं बैठ जाती और जगत की ओर आँख मिचकाती

हे देव...

परंतु खींच लाए तुम मुझे संसार में—

यह अच्छा था जो फेंका होता मुझे अग्नि में

बरसी वसंत में मैं ओले की भाँति—

माता-पिता को ऐसे ही डाला कष्ट में

इनको देना था कष्ट मुझे साधन बना दिया

हे देव...

मेरे जन्म से ही कोई ख़ुश हुआ—

आहें निकली चारों ओर से और घर उदासी में डूब गया

होती बेटा मैं तो चढ़ता रवि पूरब से उनका—

यह सुन कि अब लड़की है उनकी बँध गई घिग्घी

कि देखा चित्र इसमें अपने उजड़ने का

हे देव

जान जोखम में उन्होंने डाली फिर जुत गए हैं बैल से—

खो गया इक आन में उनका सुख चैन

पेट अपना काटकर मेरे लिए करने लगे संचय—

दमड़ी-दमड़ी का, रत्ती-रत्ती का, दाने-दाने का

परंतु उनके इतना करने पर भी कोई तुष्ट हुआ

हे देव...

जब मैं छोटी थी उनको लगता था हूँ मैं फुलवारी खिलती सी—

हुई बड़ी जब मैं लगी जलती अग्नि-सी

जब मैं छोटी थी उनको लगता था हूँ मैं कान में हिलती बाली सी—

हुई बड़ी जब मैं लगी उर का नासूर-सी

टल गया मेरा शैशव मानो बिजली की चमक-सी

हे देव....

घुलती हूँ मै चिंता से कहाँ भेजा जाए मेरा पारसल—

चिंता यह है कहीं वह हो उजड्ड

मैं कहती हूँ सताएँगे वे मुझे जाने कैसे—

मैं घुलती हूँ कि यह मुश्किल मेरी कैसे हो जाए हल

मैं घुलती हूँ पिता मेरा कहीं लज्जित हो जाए

हे देव

ब्याहना अपना बेटा हो तो करेंगे वह कर लंबे—

मानवता भगवान का रहेगा उनको स्मरण

यह कैसे-कैसे झूठी ही शान दिखाते—

यह कैसी-कैसी चालों से शिकारों को फँसाते

परंतु मेरी बारी आती जब मुर्दनी-सी छा जाती

हे देव

हे देव अपने हाथ से मेरे लिए कोई रास्ता निकाल—

बेटे वाले के हृदय में मेरे लिए दया उत्पन्न कर

नहीं तो यह मेरा बोझ कौन उठाएगा—

मेरे माता-पिता पहले से ही अपमानित हैं

असहायों को अपना घर भी अब रहन रखना है

हे देव...

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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