गिर गया बूढ़ा पेड़

gir gaya buDha peD

ऋतेश कुमार

ऋतेश कुमार

गिर गया बूढ़ा पेड़

ऋतेश कुमार

गिर गया बूढ़ा पेड़ मेरे गाँव का

नहीं झेल पाया कल रात की झंझावात

औंधे मुँह गिरा है

धरती की छाती की बाती-सी

जड़ें बाहर गई हैं

जिन हाथों वह आशीषता था

बँधी मन्नतों वाली वे डारें टूट कर पड़ी हैं पास ही

कहते हैं इस पेड़ की जड़ें चार गाँवों में फैली थीं

बाबा सुनाते थे कई कहानियाँ इसकी

जो उनके बाबा ने अपने बाबा से सुनी थीं

हर दम मनगर-सा छाया रहता था इसके पास

जीवन का सोता वह

जाने क्यों रहने लगा था उदास इधर कई दिनों से

लोग कहते हैं पेड़ आख़िरी बार हुआ था उदास

जब मिसिर जी की बहू अँधेरी रात झूल गई थी इसकी डाल से

शोक मनाता रहा था तब वह अकेला

कई दिनों तक त्याग दिए थे उसने सारे सामाजिक काज

पेड़ मर रहा है

अब नहीं आएँगी गाय-बकरियाँ

इसके पास सूरज की धधक से बचने

पेड़ नहीं होगा शामिल बच्चों के खेल में

वे नहीं आएँगे छिपने इसकी ओट में

नहीं बँधेंगी मनौतियों की डोर इसकी डार पर

नहीं दे पाएगा वह आशीष नई दुल्हन को

नहीं सुन पाएगा तीज-व्रतों के मंगल-गीत

भरी दुपहरी थके हारे मँगरू काका का बिरहा

बिस्मिल के थाप पर हरिहर बाबा का मंगलवारी पचरा

नहीं भेज पाएगा पेड़ अब अपने पत्ते जग-परोजनों पर

नहीं आएगा कोई मेहमान इसकी छाँव में सोने के लिए

नहीं सुन पाएगा वह घर-गाँव की पंचायतें

नहीं लिखेगा कविता एक गुमनाम कवि इसकी जडों के पास बैठ

मरने से बड़ा है जीवन में सबके शामिल नहीं रह जाने का दुख

आख़िरी साँसें ले रहा है पेड़

हवा से अब भी हिलते हैं कुछ हरे पत्ते उसके

बैठे बुद्धिजीवी दुखी है

कहते हैं कुछ

बचाया जाना चाहिए इस पेड़ की धरोहर

कुछ इसकी शाखाओं को रोपना चाहते हैं

दूसरी जगहों पर

उगाना चाहते हैं उसके जैसा पेड़ जगह-जगह

एक पेड़ का गिरना ऐसी घटना नहीं

जिसे समाचार-पत्र छाप सकें

कतरनें कहती हैं

भयंकर आँधी में लोगों ने जान पर खेल कर बचाई गायें

गायों के बच जाने से ख़ुश है सरकार

मुखिया नें बाँटी मिठाइयाँ

हर तरफ़ छपी है ख़ुशी की ख़बर

बस पेड़ के मरने का दुख कहीं नहीं है

स्रोत :
  • रचनाकार : ऋतेश कुमार
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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