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घनी घाम में

ghani gham mein

मोना गुलाटी

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मोना गुलाटी

घनी घाम में

मोना गुलाटी

और अधिकमोना गुलाटी

    घनी घाम में झुलसे हुए चेहरे :

    हथेलियों में ढूँढ़ते हैं

    छाया; वृक्षों की ठंडक!

    हथकड़ियों का झनझनाते हुए :

    उँगलियों में उँगलियाँ

    फँसाए; रौंदते हुए घास

    घनी घाम मे घूमते हैं चेहरे :

    फ़र्क़ सिर्फ़ चेहरों के पैनेपन का है, तुर्श नाक या भींची

    हुई आँखों का है; गर्दन से नीचे का धड़, वही दो हाथ

    दो पैर लिए घिसटता है :

    फ़र्क़ सिर्फ़ वर्दी का है: लिबास का है: धरती पर उगा

    हुआ घास; पूरे के पूरे संताप का हिसाब बराबर आँकता है।

    मुझे

    छोड़ दिया गया है

    कुर्सी के मोड़ से झटक कर, विश्वनविद्यालय के लंबे

    युकिलिप्टस के पेड़ों के नीचे झुलसने से बचने के लिए

    कचहरी के तने हुए चेहरों में

    ढूँढ़ने के लिए अलसाई

    आँख; खोया हुआ प्यार और

    बर्फ़ की कंदरा!

    बर्फ़ में कितनी आग है;

    युकिलिप्टस के पेड़ों में कितनी

    मादक ठंड थी और कुर्सी की चटख़ में

    कितना पैनापन

    बार-बार दास आँखों और चटख़ते हुए चेहरों में

    देखकर मुझे

    ज्ञात हुआ है कि आदमी की ज़रूरत

    कहीं भी हो सकती है;

    डूबती हुई साँझ खोजने के लिए!

    घनी घाम में झूलसे हुए चेहरे

    ढूँढ़ते हैं छाँव और

    बाँध लेते हैं मुझे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सोच को दृष्टि दो (पृष्ठ 69)
    • रचनाकार : मोना गुलाटी

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