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ग़लती से

ghalati se

संजय कुंदन

अन्य

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संजय कुंदन

ग़लती से

संजय कुंदन

जो क़र्ज़ बाँटने का काम कर रहा था

वह इतिहास बाँचना चाहता था

और एक इतिहास बाँचने वाले को लगता था कि

वह ग़लती से इस पेशे में गया है,

उसे तो वास्तुविद बनना था

एक नौजवान जो परिंदों को पढ़ना चाहता था

वह फ़ाइलें पढ़ने का काम कर रहा था

वह अक्सर हाथों को डैनों की तरह लहराने लगता था

और हँसी का पात्र बनता था अपने दफ़्तर में

अगर ग़लतियों का हिसाब-किताब किया जाए

तो पता लगेगा कि जीवन भरा हुआ है ग़लतियों से

एक आदमी का तो कहना था कि

जिस शहर में काट दिए उसने चालीस साल

उसमें वह ग़लती से चला आया था

वैसे कई लोग मानते हैं कि हर बार सरकार

ग़लती से ही बन जाती है

लेकिन इसका पता बाद में चलता है

कुछ लोगों को जीवन के आख़िरी दौर में

तब अपनी किसी ग़लती का एहसास होता है

जब कुछ नहीं किया जा सकता

फिर भी उनमें से कई लोग बेचैन हो जाते हैं भूल-सुधार के लिए

वे हड़बड़ा कर अपना चेहरा बदलने लग जाते हैं

पर जल्दी ही उन्हें पता चल जाता है कि

यह और भी बड़ी गलती होगी

ऐसे लोग फिर बताने लगते हैं कि

ग़लती से ही सही उन्होंने जो पाया वही क्या कम है

उनकी ज़िंदगी इतनी ख़राब भी नहीं।

स्रोत :
  • रचनाकार : संजय कुंदन
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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