Font by Mehr Nastaliq Web

बढ़ई का बेटा

baDhai ka beta

कृष्ण कल्पित

अन्य

अन्य

कृष्ण कल्पित

बढ़ई का बेटा

कृष्ण कल्पित

और अधिककृष्ण कल्पित

     

    एक

    पूरे जंगल की ख़बर है 
    बढ़ई के बेटे को 

    वह ख़बरनवीस नहीं है 
    वह किसी को नहीं बताएगा वह ख़बर 
    जो छुपी है उसके सीने पर 

    वह थोड़ी देर में चल देगा 
    आरी उठाकर जंगल की ओर 
    एक-एक पेड़ से बतलावण करता 
    वह अचानक धर देगा 
    आरी के दाँतों को 
    किसी सूखी हुई डाल पर 
    पूरा जंगल थिरकता रहेगा 
    आरी की ताल पर 

    वन विभाग की ख़ाकी जीपों से 
    उतरते हैं वे 
    बढ़ई का बेटा पहचानता है 
    एक-एक दुश्मन का चेहरा 
    वह भिड़ जाएगा 
    अपनी घिसी हुई आरी लेकर 
    थोड़ी देर में 
    सुनाई पड़ेगी एक चीख़ 
    वह किसी बढ़ई के बेटे की होगी 

    इसके बाद ही 
    कटता है कोई जंगल!

    दो

    लकड़ियाँ चीरता बढ़ई का बेटा कवि नहीं है 
    वह तब भी एक कारीगर है 
    जब उसकी आरी से संगीत जन्मता है 

    एक बढ़ई के बेटे का 
    दुनिया कुछ नहीं बिगाड़ सकती 
    वह चाहे तो बना सकता है 
    इस दुनिया से एक मेज़ 

    वह बेमतलब नहीं होगा नाराज़ 
    बिखेर नहीं लेगा बाल 
    इतनी देर में वह ठोक लेगा 
    दरवाज़े के जोड़ 

    उसने नहीं बनाई कोई किताब 
    लेकिन किताब को गिरने से बचाया है!

    स्रोत :
    • पुस्तक : बढ़ई का बेटा (पृष्ठ 25)
    • रचनाकार : कृष्ण कल्पित
    • प्रकाशन : रचना प्रकाशन
    • संस्करण : 1990

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए