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मूरख

murakh

सेर्गेई मिख्लकोव

अन्य

अन्य

और अधिकसेर्गेई मिख्लकोव

    मेरे दोस्त

    ख़तरा है घोड़े की पिछाड़ी से

    गाय और बैल की अगाड़ी से

    किंतु एक मूरख से

    सारे दृष्टिकोणों से

    ऊपर से नीचे तक

    ख़तरा ही ख़तरा है

    जब कभी किसी मूरख को

    ऐसी जगह पर बिठा दिया जाता है

    जहाँ अधिकार था

    किसी समझदार का

    तेज़ से तेज़ आँख को

    मूरख की असलियत

    जल्दी ही जान लेना बहुत कठिन होता है

    मूरख कुछ समय को वाक्-पटु

    और सभ्य बन सकता है

    पुरानी पशुता को

    बिल्कुल छोड़ सकता है

    अच्छा लिख सकता है

    और बोल सकता है

    सचमुच प्रभावशाली गूँगा बन सकता है

    मेरे दोस्त

    एक मूरख अकेला ही

    केवल एक पल में

    कर सकता है गड़बड़ी इतनी

    जिसको बुद्धि बल से

    या कि निज धीरज से

    ठीक-ठाक करने में होंगे लाचार

    आदमी हज़ार

    किंतु हम यहाँ

    सामान्य-नियम का उल्लेख करते हैं

    ताकि बुद्धिमान उसका अनुगमन करें

    मूरख से डरने के कितने ही कारण हैं

    किंतु एक मूरख मज़ाक़ से डरता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक सौ एक सोवियत कविताएँ (पृष्ठ 204)
    • रचनाकार : सेर्गेई मिख्लकोव
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
    • संस्करण : 1975

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