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बाढ़

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अय्यप्प पणिक्कर

अन्य

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और अधिकअय्यप्प पणिक्कर

    ढाई रुपये से ज़रा भी कम नहीं

    उसने कहा, और अपने कपड़े खोलकर वह घास पर लेट गई

    यहाँ कोई बिक्री-कर नहीं, उसने राहत महसूस की

    अपनी देह को धनुष की तरह झुकाकर

    अपने प्रेम के पाँच बाण छोड़े

    फिर बाढ़ आई,

    सृजन कब होगा?

    संभव है यह सृजनविहीन प्रेम हो

    निपटने पर वह जाने को खड़ा हुआ

    उसने उसके थके चेहरे को देखकर कहा :

    महाशय, ये पचास पैसे अपने पास रखो

    बस पकड़ना, इस सबके बाद चलना ठीक नहीं

    वह इतना पस्त हो चुका था शायद श्रम से

    कि उसके हाथ चिल्लर के लिए स्त्री के हाथ तक नहीं पहुँचे

    सारे रस्ते पैदल चल जब वह घर पहुँचा

    उसकी माँ खड़ी थी दरवाज़े पर आँखों में चिराग़ जलाए

    स्रोत :
    • पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 232)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : अय्यप्प पणिक्कर
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1989

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