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फेनिल आकाश

phenil akash

मिक्लोश राद्नोती

अन्य

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मिक्लोश राद्नोती

फेनिल आकाश

मिक्लोश राद्नोती

और अधिकमिक्लोश राद्नोती

    फेनिल आकाश में चाँद नाच रहा है।

    मुझे आश्चर्य है कि मैं जीवित हूँ।

    इस युग को कुरेद रही है एक अनथक मौत,

    और जो इसे मिलते हैं सफ़ेद पड़ जाते हैं।

    जब-जब यह वर्ष चारों तरफ़ देखता है और चीख़ पड़ता है,

    चारों तरफ़ देखता और बेहोश हो जाता है।

    कैसा है यह शरद जो मेरे पीछे दुबक रहा है!

    और कैसा यह शीत, दर्द से सुन्न!

    जंगलों से ख़ून टपक रहा है, और समय

    लुढ़क-पुढ़क होता हर घड़ी ख़ून टपकता है।

    हवा ने लिख दिए हैं बड़े-बड़े अंक,

    बड़े और गाढ़े अंक, बर्फ़ पर।

    मुझे पता है वह क्या है, और वह दूसरा भी।

    हवा बोझिल महसूस हो रही है।

    एक अनमनी चुप्पी, बेचैन, मुझे आग़ोश में भरती है—

    जन्म से पहले मुझे जिस तरह बाँधा था।

    यहाँ, इस पेड़ की पोढ़ी पर रुकता हूँ,

    ग़ुस्से से बिफर रही इसकी हरियाली।

    एक डाल नीचे झुकी आती है। क्या यह मेरा गला दबोचेगी?

    मैं डरपोक तो नहीं, ही कमज़ोर हूँ।

    थका भर हूँ। चुप हूँ। और वह डाल भी तो

    डरी-डरी और ख़ामोश मेरे केश से गुज़र जाती है।

    सचमुच भुला देना चाहिए, लेकिन

    अभी तक मैं कभी कुछ नहीं भूला हूँ।

    उफनता बढ़ रहा है फेन चाँद पर, आसमान पर

    ज़हर की गहरी हरी पट्टी-सी खिंची है।

    धीरे-धीरे, होशियारी के साथ मैं बनाता हूँ

    अपने लिए एक सिगरेट। मैं जीवित हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दस आधुनिक हंगारी कवि (पृष्ठ 29)
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक गिरधर राठी, मारगित कोवैश
    • प्रकाशन : वाग्देवी प्रकाशन
    • संस्करण : 2008

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