त्रिशुल

trishul

मोहन सिंह

मोहन सिंह

त्रिशुल

मोहन सिंह

हे मित्र,

हमने मिलन की विह्वलता देखी

और विछोह के झंझा प्रहार भी झेले।

हम नयन को मशाल कहते रहे

और ओठों को शक्कर तथा खाँड

केश राशि में मेघ तथा

मुख-मंडल में चाँद के रूपक बाँधते रहे।

प्रणय और रूप के स्तवन में

यौवन जीर्ण-शीर्ण हो गया।

इस विषाक्त वातावरण में

प्रेम में शमन की शक्ति कहाँ?

हलधर हल चलते रहे निरंतर

और उनके पेट पीठ में पैठे रहे

लोहार फाले कूटते मर गए

और मोची पनही गाँटते रहे

टहलुए टहल करते मर गए

किंतु उनके भाग में एक गट्ठा अनाज ही आया

कृषक-नारियाँ अन्न बीनती रहीं

किंतु तुप और गेहूँ तो समाप्त ही नहीं होते

खाती के हाथ में टट्टे हैं

किंतु कानी-बाँट तो समाप्त ही नहीं होती।

धरती तो ख़ूब उपजाऊ है

किंतु परान्नभोजी परान्नभक्षण किए जा रहे हैं

ये सामंती बिफरे हुए फिर रहे हैं

और जनता आतंकग्रस्त है

यह साम्राज्यवादी शठ

नित्य युद्ध की धमकियाँ देते हैं

अन्याय और आतंक की चिनगारियाँ भड़क उठी हैं

ज्वाला प्रचंडतर होती जा रही है

रूप का माया झुलस गया है

प्रणय की केश राशि भी सड़ चुकी।

हे श्रमिक, हे कृषक, जागो

आलस्य को सिर से परे फेंको।

हे लोहार, भट्टी तपा दो

धौंकनी को और तेज़ करो

भरपूर शक्ति से हथौड़ा चलाओ

और हँसिया का मुँह पीट दो

हे श्रमिक, लोहे का चाँटा मारकर

सोने का मुँह मोड़ दो

अपने हथौड़े की एक चिनगारी हमें भी दो

जिसे हम संसार-भर में बाँट दें

मैं तुम्हें लाख बात की एक बात बताऊँ

इसे गाँठ बाँध लो

फटा हुआ श्रम दास बनकर दिन काटता है

जुड़ा हुआ श्रम ब्रह्मांड पर विजय पा लेता है

हँसिया, लेखनी और हथौड़े

ये शस्त्र इकट्ठे करो

इनसे एक शक्तिशाली त्रिशूल की रचना करो

और भीषण युद्ध छेड़ दो

श्रम की जय-जय हो

और अत्याचार की पराजय।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 463)
  • रचनाकार : मोहन सिंह
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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