ईश्वर को किसान होना चाहिए

ishwar ko kisan hona chahiye

विहाग वैभव

विहाग वैभव

ईश्वर को किसान होना चाहिए

विहाग वैभव

ईश्वर सेनानायक की तरह आया

न्यायाधीश की तरह आया

राजा की तरह आया

ज्ञानी की तरह आया

और भी कई-कई तरह से आया ईश्वर

पर जब इस समय की फ़सल में

किसान होने की चुनौतियाँ

मामा घास और करेम की तरह

ऐसे फैल गई हैं कि

उनकी जिजीविषा को जकड़ रही है चहुँओर

और उनका जीवित रह जाना

एक बहादुर सफलता की तरह है

तो ऐसे में

ईश्वर को किसान होकर आना चाहिए

(मुझे लगता है ईश्वर किसान होने से डरता है)

वह जेल में

महल में

युद्ध में

जैसे बार-बार

लेता है अवतार

वैसे ही उसे

अबकी खेत में लेना चाहिए अवतार

ऐसे कि

चार हाथों वाले उस अवतारी की देह

मिट्टी से सनी हो इस तरह कि

पसीने से चिपक कर उसके देह का हिस्सा हो गई हो

बमुश्किल से उसकी काली चमड़िया

ढँक रही हों उसकी पसलियाँ

और उस चार हाथों वाले ईश्वर के

एक हाथ में फरसा

दूसरे में हँसिया

तीसरे में मुट्ठी भर अनाज

और चौथे में महाजन का दिया परचा हो

(कितना रोमांचक होगा ईश्वर को ऐसे देखना)

मुझे यक़ीन है ईश्वर महाजन का दिया परचा

किसी दिव्य ज्ञान के स्रोत की तरह नहीं पढ़ेगा

वह उसे पढ़कर उदास हो जाएगा

फिर वह महसूस करेगा कि

इस देश में ईश्वर होना

किसान होने से कई गुना आसान है

सृष्टि के किसी कोने

सचमुच ईश्वर कहीं है

और वह अपने अस्तित्व को लेकर सचेत भी है

तो फिर अब समय गया है कि

उसे अनाज बोना चाहिए

काटना चाहिए, रोना चाहिए

ईश्वर को किसान की तरह होना चाहिए।

स्रोत :
  • रचनाकार : विहाग वैभव
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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