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विदाई

vidai

अनुवाद : मदन सोनी

निकानोर पार्रा

अन्य

अन्य

 

जाने का समय हो चुका है
मैं सभी का कृतज्ञ हूँ—
जितना अपने मेहरबान दोस्तों का
उतना ही उन्मादी दुश्मनों का।
वे अविस्मरणीय पुण्यात्मा!
नर्क
क्या हुआ अगर मैंने हासिल नहीं किया
लगभग सार्वभौम विद्वेष!
मुझ पर टूट पड़ने के लिए सड़क पर दौड़ते
सुखी कुत्तो भगवान तुम्हारा भला करे!

दुनिया के महानतम आनंद के साथ
मैं तुम्हें विदाई के लिए आमंत्रित करता हूँ।

धन्यवाद और धन्यवाद
ठीक है कि मैं रो रहा हूँ
हम कभी फिर मिलेंगे
समुद्र पर इस या उस ज़मीन पर
अपना ध्यान रखो — मुझे दो शब्द लिख भेजना
रोटियाँ सेंके जाओ
जारी रखो मकड़जालों का बुनना
मैं कामना करता हूँ तुम्हारी सेहत की समृद्धि की
और उन दिनों की जब तुम इनका आनंद ले सको
सरू के इन दरख़्तों की
मूढ़ शिखाओं के बीच
मैं मुँह बाए प्रतीक्षा करता हूँ

       
स्रोत :
  • पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 58)
  • संपादक : अशोक वाजपेयी
  • रचनाकार : निकानोर पार्रा
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
  • संस्करण : 1989

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