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एक ठोस बदन अष्टधातु का-सा

ek thos badan ashtadhatu ka sa

शमशेर बहादुर सिंह

अन्य

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शमशेर बहादुर सिंह

एक ठोस बदन अष्टधातु का-सा

शमशेर बहादुर सिंह

और अधिकशमशेर बहादुर सिंह

    एक ठोस बदन अष्टधातु का-सा

    सचमुच?

    जंघाएँ दो ठोस दरिया

    ठै रे हुए-से

    मगर जानता हूँ कि वो

    बराबर-बराबर बहुत तेज़

    रौ में हैं

    ठै रा हुआ-सा मैं हूँ मेरी

    दृष्टि एकटक्

    ठोस वक्ष कपोल उभरे हुए चारों

    निमंत्रण देते चैलेंज-सा

    चारों एक साथ

    अपनी स्थिरता में, चल

    काल की तरह

    चरण

    हैं वहीं मगर दर अस्ल हैं नहीं वहाँ

    वो उस अष्टधातु की मूर्ति को

    कहीं लिए जा रहे हैं

    शायद

    मेरे व्यक्तित्व के अदृश्य सागर की ओर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : टूटी हुई, बिखरी हुई (पृष्ठ 66)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : शमशेर बहादुर सिंह
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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