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एक प्रार्थना

ek pararthna

अखिलेश जायसवाल

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अखिलेश जायसवाल

एक प्रार्थना

अखिलेश जायसवाल

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    उस दिन मैंने बच्चों के स्कूल में सुनी

    प्रातः कालीन ईश्वर प्रार्थना,

    एक प्रार्थना—

    आँसुओं से भींगी हुई,

    श्रद्धा और विनय में डूबी हुई,

    शरीर के उद्वेष्टनों को श्लथ करती हुई,

    मन के परिव्रजन को स्तंभ करती हुई,

    अवदीर्ण अंतस् पर प्रसादकर लेप लगाती हुई।

    जिसका प्रत्येक शब्द

    शरीर की कोषाओं में तरल बनकर

    प्रवाहित हो रहा था,

    जिसका प्रत्येक सुर शरीर के प्रत्येक स्नायु को

    तरंगित और स्पंदित कर रहा था।

    हमारे जीवन मै इतनी जगह कहाँ रह गई है

    जहाँ प्रार्थना के दो-चार पल रखे जा सकें,

    मौन के कुछ पल समा सकें,

    जहाँ कुछ अच्छी पुस्तकों को रखा जा सके।

    हमारे जीवन ऐसी जगह कहाँ रह गई है

    जहाँ फूलों को उगाया जा सके,

    उनके सौरभ को पिया जा सके।

    हमने अपने वातायन कहाँ खुले रखे हैं

    जहाँ से सके कोई ताज़ी हवा का झोंका

    और सके रात में चाँदनी।

    प्रभु!

    खोल हमारे वातायन और बंदकपाट

    भर दो जीवन में अवकाश

    कर दो हमारे जीवन को धरती और आकाश।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अखिलेश जायसवाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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