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एक मुकम्मल घर

ek mukammal ghar

सुधा उपाध्याय

अन्य

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सुधा उपाध्याय

एक मुकम्मल घर

सुधा उपाध्याय

और अधिकसुधा उपाध्याय

    बहुत-सी उम्मीदों का असबाब बाँधकर,

    अम्मा मैंने एक घर बनाया है...

    रहूँगी मैं वहाँ तुम्हारे साथ, रहेगी मेरी बिटिया वहीं मेरे साथ

    घर के बाहर लगी होगी तख़्ती तुम्हारी नातिन की

    अम्मा मैंने एक घर सजाया है...

    सजेगी फ़र्श तुम्हारी निश्छल मुस्कराहट से

    रंगेगी हर दीवार हमारे कहकहों से

    लगाऊँगी घर के कोनों में बड़ा-सा आईना

    जहाँ दिखेंगे हमें हमारे पुरुष

    अम्मा मैंने एक घर बसाया है...

    आसमान की अलगनी पर सुखाऊँगी तुम्हारी धोती

    अपनी सलवार क़मीज़ और बिटिया की शर्ट-पैंट

    आँगन में बिराजेंगे तुम्हारे शालिग्राम भगवान्

    रसोई में महकेगा सालन तुम्हारे हाँथ का

    छत पर सुखाएँगे हम अपने-अपने आँसू

    बस तुम लौट आओ अम्मा...

    हम भी बना सकती हैं सजा सकती हैं बसा सकती हैं

    एक मुकम्मल घर...

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुधा उपाध्याय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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