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एक क्षण की याद

ek kshan ki yaad

अमन त्रिपाठी

अन्य

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अमन त्रिपाठी

एक क्षण की याद

अमन त्रिपाठी

कैसे करूँगा अपनी ईमानदार लेकिन

कटु उक्तियों का प्रायश्चित

अपने-अपने वक़्त पर सभी चले जाएँगे

मैं भी चला जाऊँगा

पिता देखेंगे पास आते हुए बहनें देखेंगी दूर जाती हुई

माँ साथ खड़ी रहेगी सबको देखेगी

घर के बुज़ुर्ग नहीं देखेंगे वे इंतज़ार करेंगे

सभी एक-दूसरे के जाने की प्रतीक्षा में हैं

ऐन इसी वक़्त मुझे याद आएँगी अपनी कटूक्तियाँ

जिन्हें मैंने इस अहंकार में बोला था कि

यह क्षण

यहीं रुक जाने वाला है

कोई कहीं नहीं जाने वाला है

मेरे वाक्-कौशल और तीक्ष्णता का साक्षी यह क्षण

कहाँ जाएगा मेरी इच्छा के विरुद्ध लेकिन अब देखो

इस क्षण को जैसे-तैसे बिताता हुआ

सोचता हूँ

अच्छा हुआ वह क्षण बीत गया

अच्छा हो यह क्षण भी जल्दी बीते

पिता को आता हुआ देखूँ

बहनों को दूर जाते हुए देखता हुआ देखूँ

और सबके एक एक दिन चले जाने की याद को

देखूँ याद में ग़र्क़ होता हुआ

कैसा है जीवन

हाय!

पश्चातापों का मेला

स्रोत :
  • रचनाकार : अमन त्रिपाठी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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