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एक कविता बेटी शीरीं के नाम

ek kawita beti shirin ke nam

फ़िरोज़ ख़ान

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फ़िरोज़ ख़ान

एक कविता बेटी शीरीं के नाम

फ़िरोज़ ख़ान

और अधिकफ़िरोज़ ख़ान

     

    एक

    मेरी आँखों का अधूरा ख़्वाब हो तुम
    आँधी नींद का टूटा हुआ-सा ख़्वाब

    मेरे लिए तो तुम वैसे ही आईं
    जैसे मज़लूमों की दुआएँ सुनकर
    सदियों के बाद आए
    पैग़म्बर
    या कि मथुरा की उस जेल में
    एक बेबस माँ की कोख
    में पलता एक सपना
    पैवस्त हुआ हो
    मुक्ति के इंतज़ार में

    मैं जानता हूँ कि
    तुम्हारे पास न कोई छड़ी है पैग़म्बरी
    और न ही कोई सुदर्शन चक्र

    दुनिया के लिए
    तुम होगी सिर्फ़ एक औरत
    एक देह
    और होंगी
    निशाना साधतीं कुछ नज़रें

    तुम्हारे आने की ख़ुशी है बहुत
    दुख नहीं, डर है
    कि पैग़म्बर के बंदे अब
    ठंडा गोश्त नहीं खाते।

    दो

    मैंने देखा
    तुम आई हो
    आई हो तो ख़ुशआमदीद

    आधी दुनिया तुम्हारी है
    जबकि मैं जानता हूँ कि
    इस आधी दुनिया के लिए
    तुम्हें लड़नी होगी पूरी एक लड़ाई
    तुम्हारी इस आधी दुनिया
    और मेरी आधी दुनिया का सच
    नहीं हो सकता एक

    तुम आई हो तब
    जबकि ख़तों के अल्फ़ाज़
    दिखते हैं कुछ उदास
    काग़ज़ पर नहीं दिखता
    चेहरा
    हँसता, उदास, ग़मगीन या कि इंतज़ार में
    पथराई हुई आँखें लिए

    आई हो तो ख़ुशआमदीद
    लेकिन तब आई हो
    जबकि नहीं खुलते दरवाज़े कई
    एक आँगन में
    नहीं लौटते परिंदे किसी पेड़ पर
    पेड़ इंतज़ार में हुआ जाता है बूढ़ा

    मेरा समय
    तुम्हारे समय से बेहतर है
    यह न मैं जानता हूँ
    और न तुम बता पाओगी लेकिन
    मैंने सुना है
    ज़मीन पर
    तीन हिस्सा पानी है और
    सुना तो यह भी है कि
    आदमी भी
    तीन हिस्सा पानी ही तो है

    अपनी आँखों का पानी
    बचाए रखना तुम
    तुम आई हो तो ख़ुशआमदीद!

    स्रोत :
    • रचनाकार : फ़िरोज़ ख़ान
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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