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एक कहानी

ek kahani

चेस्लाव मीलोष

अन्य

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चेस्लाव मीलोष

एक कहानी

चेस्लाव मीलोष

और अधिकचेस्लाव मीलोष

    एक फ़ौज-शासित देश के बीचोंबीच, एक शहर में जिसकी सड़कों

    पर राष्ट्रवादी अभियान की चीख़ें फुसफुसा रही थीं, एक युवक

    शोध कर रहा था रूप के तत्व पर, उसके मूल और अस्तित्व पर।

    वह चाहता था उसके लिए उपयोग करना पाँचों इंद्रियों का

    लेकिन उनका शासन नींद भर चला। सुबह के साथ वह ख़त्म हो गया।

    रॉकेट फूटे गरज के साथ आकाश की पृष्ठभूमि में।

    एक दीवार ढाँचों के ढेर-सी काँप कर गुलबियाती रही राष्ट्रपति के

    नाम के दिनों पर।

    वर्ष, स्त्रियों की विभिन्न जातियों द्वारा नापे, बीत गए। समय-समय

    पर सड़कों पर

    पैरों-तले अतीत गिरता रहता था, उछलता हुआ, काटी गई मछली की तरह।

    जीवित देह द्वारा रची गई बिंबमाला को जानने

    और धातु को सचल करने के लिए

    अपनी आँख को कनखियाना चाहिए,

    चीज़ों को उनके बाहर से देखना चाहिए

    एक तत्व एक प्रसन्न राजगीर का चेहरा भी बन सकता है,

    पर ज़्यादा सुरक्षित होगा कुछ अलग, मानवीय जीवन से कुछ कम जुड़ा हुआ।

    आकाश सुबह विदीर्ण हो रहा था, सूर्य के माँस को अनावृत करते

    हुए। पृथ्वी, सुरंगों से ढँकी हुई, पहली रेलगाड़ियों के कंपन से बेचैन,

    फुफकार रही थी।

    प्रार्थना, एक अज्ञात भाप, अधिकतर धुआँ उगलती थी

    एक प्रयोगशाला के कोनों से, एक देह के संतुलन में छिपी हुई।

    एक दिन हवा ने देश के झंडे को चिथड़ा-चिथड़ा कर डाला।

    अगली सुबह चौकों पर सर्वहारा गा रहे थे, कभी कहीं झलक

    एक अकेली धाँय।

    रूप का शोधकर्ता अपने मकान की सँकरी सीढ़ियों पर

    घुटे हुए गले के साथ पड़ा था। एक ललपीला मुर्ग़, सुनहरा अर्द्धचंद्रकार पिंड,

    उसके सिर के ऊपर अपने पंख फड़फड़ाते हुए, बाँग दे रहा था भर्राई

    आवाज़ में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दरवाज़े में कोई चाबी नहीं (पृष्ठ 101)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक अशोक वाजपेयी, रेनाता चेकाल्स्का
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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