एक घटिया बिंब के विरुद्ध

ek ghatiya bimb ke viruddh

संध्या चौरसिया

संध्या चौरसिया

एक घटिया बिंब के विरुद्ध

संध्या चौरसिया

प्रतियोगिता साहित्य के पन्ने रटते हुए

बहुत याद आईं कविताएँ

जल्दी से खोल ली ‘कात्यायनी’ की

‘जादू नहीं कविता’

फिर दम भर कर ली ताज़ा साँस

आज़ाद मन का समय चोर अपराधी

भाग गया एक से बारह चिल्लाते

अस्त-व्यस्त किताबों के बीच

वस्तुनिष्ठ प्रश्नों की कोई भारी क़िताब उठाती हुई

लगातार बचाती रही नज़र ‘मुक्तिबोध’ से

बावड़ी की ऊँची सीढ़ियों से डर लगता है

बावड़ी में ठहरा पानी पसीजता है मवाद जैसा

उस पर चमकता पूरा चाँद

फोड़े का मुहाना है

उसका समय पूरा हो चुका है

बारिश की बूँदें उगती हैं

ऊपर क्षोभ मंडल से

धरती पर गिरते ही हो जाती हैं नाला

बीच कहीं किसी बिजली के तार पर

फटे पतंग-सा झूलता है

प्रकृति का मानवीकरण

पचहत्तर योजनाओं की फ़ाइलों में ज़ब्त

विफल हैं आपके वैज्ञानिक शोध

ऐतिहासिक क्रांतियों से मनरेगा तक के

साल के आँकड़ों के कोरे तथ्य

कौन-सा विकल्प चुनेंगे आप?

प्रतिदिन उसकी सत्ताइस रुपए की आमदनी से

मेरा प्रगतिशील दोस्त माँग लेता है

तीन रुपए उधार की बीड़ी

अंतिम बची रह गई संतान के मरने से पहले

बचे हुए चौबीस रुपए का कॉरपोरेटी दूध ख़रीद

किसान मरकर एक मज़दूर जनमता है

इसके पहले कि भूलना चाहूँ

बाईनरी और डेसिमल का अंतर

खच्चड़ों की रेस ख़त्म हो चुकी होगी

प्रतिद्वंदी धर लाएँगे समय चोर अपराधी को

और सरकार बीस रुपए अधिक महँगा कर देगी तेल

पिता फिर भागेंगे अगली सुबह और शाम

और फिर अगली सुबह और शाम

रुककर नहीं करेंगे प्रतिवाद

अपने हक़ का तेल ख़रीदने के लिए

चुपचाप सत्ता की जमाख़ोरी जितना बहाएँगे पसीना

रोज़गार का नवीनतम आत्मनिर्भर विकल्प बनेंगे

'मज़दूरों के बहते पसीने में तलते पकौड़े'

यह एक घटिया बिंब हैं

शुरू करने के लिए कोई कविता

लेकिन मुझे नहीं दिलचस्पी आपके सौंदर्यशास्त्र में

मैं भूख को भूख कहूँगी उपवास नहीं

काव्यशास्त्र एक अभिजात्य विषय है

इसके पहले कि समय चोर अपराधी के नाम

अगला वारंट निकले

और मेरे सारे रंग और ब्रश नीलाम हो जाएँ

दो किलो तेल प्रति माह ख़रीद सकने की

नौकरी के लिए

जल्दी से रट जाऊँ अगला पन्ना

फिर दीमक सारी उदास नज़्में खा जाएँ तो क्या

गले में कोई आवाज़ मार जाए तो क्या!

स्रोत :
  • रचनाकार : संध्या चौरसिया
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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