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एक गाँव

ek ganw

अनुवाद : इबोहल सिंह काड़्जम

सनख्या इबोतोम्बी

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और अधिकसनख्या इबोतोम्बी

    एक गाँव का एक हिस्सा

    रोओ रोओ रोता है!

    हँसो हँसो हँसता है!

    क्यों रो रहा है कोई भी नहीं जानता

    क्यों हँस रहा है कोई भी नहीं जानता।

    बसने वालों में

    कुछ लोगों के सिर भेड़ के हैं।

    कुछ भेड़ों के सिर आदमी के हैं,

    में—में! माँ—माँ!

    फैल गया है उनका कोलाहल!

    भेड़ कहती है मैं आदमी हूँ

    आदमी कहता है मैं आदमी हूँ

    भेड़ और आदमी के सिर टकराने से

    पड़ गईं दरारें उस गाँव में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक मणिपुरी कविताएँ (पृष्ठ 83)
    • संपादक : देवराज
    • रचनाकार : सनख्या इबोतोम्बी
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1989

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