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एक दीया तली पर

ek diya tali par

अनुवाद : रामसिंह चाहल

परमिंदरजीत

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परमिंदरजीत

एक दीया तली पर

परमिंदरजीत

और अधिकपरमिंदरजीत

    दीए मोहब्बतों के जगते रहें

    दिलों के अंदर

    सीमाओं पर

    मुंडेरों पर

    होती रहें दस्तकें, आते रहें ख़त

    जगत रहें दर-दरवाज़े

    मिलती रहें ख़ुश-आमदीद

    होती रहें छोटे-छोटे गिले-शिकवे मनाने की बूँदा-बाँदी

    किसी के आमद की ख़बर में

    भीगी रहें हमारी यादें

    कोई अंबर बनकर सर पे छाया बने

    क़दमों के सफ़र की महक बनकर लरजता रहे

    सुरमई नींद में

    जिसका कोई स्वप्न आए

    जिसका पता

    उम्र की तली पर मुस्कराए

    वह आए ख़त बनकर

    या दस्तक

    मैं दहलीज़ बनकर खड़ा हूँ

    और दरवाज़ा भी

    एक दीया मेरी तली पर जग रहा है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : ओ पंखुरी (पृष्ठ 46)
    • रचनाकार : परमिंदरजीत
    • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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