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एक बेचैन घड़ी में

ek bechain ghaDi mein

अनुवाद : विष्णु खरे

मिक्लोश राद्नोती

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मिक्लोश राद्नोती

एक बेचैन घड़ी में

मिक्लोश राद्नोती

और अधिकमिक्लोश राद्नोती

    मैं हवा में ऊँचाइयों पर रहता था, हवा में, जहाँ सूरज था

    हंगरी, अब तुम अपने टूटे हुए बेटे को वादियों में बंद करते हो!

    तुम मुझे सायों में लपेटते हो और शाम के दृश्य में

    सूर्यास्त की तपिश मुझे आराम नहीं देती

    मेरे ऊपर चट्टाने हैं, दमकता आकाश दूर है

    मैं गूँगे पत्थरों के बीच गड्ढों में रहता हूँ

    शायद मुझे भी चुप हो जाना चाहिए। वह क्या चीज़ है

    जो आज मुझसे कविताएँ लिखवा रही है? क्या वह मौत है? कौन

    पूछता है

    ज़िंदगी को कौन पूछता है,

    और इस कविता को—इन चिंधियों को?

    जान लो कि एक आवाज़ तक नहीं होगी

    कि वे तुम्हें दफ़नाएँगे भी नहीं, कि घाटी तुम्हें रोक नहीं पाएगी

    हवा तुम्हें बिखेर देगी, लेकिन कुछ अरसे के बाद

    एक पत्थर से वह गूँजेगा

    जो मैं आज कहता हूँ, और बेटे और बेटियाँ

    जब बड़े होंगे तो उसे समझ लेंगे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 213)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : मिक्लोश राद्नोती
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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