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एक अन्य आँसू

ek any ansu

मनमोहन

अन्य

अन्य

मनमोहन

एक अन्य आँसू

मनमोहन

और अधिकमनमोहन

    दिल के संगीन पत्थर से

    कभी उठती है कोई भाप

    जैसे शताब्दियों के बाद उठी हो

    और किसी आँख की धुँध बन जाती है

    या कहिए एक गोपनीय आँसू

    जो छलक जाता है अकेले में

    लेकिन बहता नहीं

    यह निरा आँसू नहीं

    कोई कठिन निष्कर्ष है

    कुछ-कुछ झिलमिलाता है

    जैसे यही हो आँख

    जिससे एक पल में अब तक देखा हुआ

    सारा एक साथ दिखाई देता है

    पराजय में जो बची रही गरिमा

    और शोक में जो बचा रहा प्यार

    वह ठीक इसी पल देखा जा सकता है

    सब कुछ स्वच्छ है

    कोई पश्चाताप नहीं

    बस एक ग्लानि है जो कोई बड़ी बात नहीं

    हाँ, जो इसकी आब को कुछ मलिन बनाती है

    पता नहीं यह कितने प्रकाश वर्ष

    दूर चलकर आया हो

    थका हुआ हो छिपना चाहता हो

    और अभी वापस लौटना चाहता हो

    इसे सहारा दें

    और वापस लौटने दें अपनी कंदरा में

    स्रोत :
    • पुस्तक : ज़िल्लत की रोटी (पृष्ठ 116)
    • रचनाकार : मनमोहन
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2006

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