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थोड़ी धरती पाऊँ

thoDi dharti paun

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

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सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

थोड़ी धरती पाऊँ

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

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    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    बहुत दिनों से सोच रहा था,

    थोड़ी धरती पाऊँ

    उस धरती में बाग़-बग़ीचा,

    जो हो सके लगाऊँ।

    खिलें फूल-फल, चिड़ियाँ बोलें,

    प्यारी ख़ुशबू डोले

    ताज़ी हवा जलाशय में

    अपना हर अंग भिगो ले।

    लेकिन एक इंच धरती भी

    कहीं नहीं मिल पाई

    एक पेड़ भी नहीं, कहे जो

    मुझको अपना भाई।

    हो सकता है पास, तुम्हारे

    अपनी कुछ धरती हो

    फूल-फलों से लदे बग़ीचे

    और अपनी धरती हो।

    हो सकता है छोटी-सी

    क्यारी हो, महक रही हो

    छोटी-सी खेती हो जो

    फ़सलों में दहक रही हो।

    हो सकता है कहीं शांत

    चौपाए घूम रहे हों

    हो सकता है कहीं सहन में

    पक्षी झूम रहे हों।

    तो विनती है यही,

    कभी मत उस दुनिया को खोना

    पेड़ों को मत कटने देना,

    मत चिड़ियों को रोना।

    एक-एक पत्ती पर हम सब

    के सपने सोते हैं

    शाख़ें कटने पर वे भोले,

    शिशुओं सा रोते हैं।

    पेड़ों के संग बढ़ना सीखो,

    पेड़ों के संग खिलना

    पेड़ों के संग-संग इतराना,

    पेड़ों कं संग हिलना।

    बच्चे और पेड़ दुनिया को

    हरा-भरा रखते हैं

    नहीं समझते जो, दुष्कर्मों

    का वे फल चखते हैं।

    आज सभ्यता वहशी बन,

    पेड़ों को काट रही है

    ज़हर फेफड़ों में भरकर

    हम सब को बाँट रही है।

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    सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

    सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

    स्रोत :
    • पुस्तक : दूर्वा (भाग-2) (पृष्ठ 23)
    • रचनाकार : सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
    • प्रकाशन : एनसीआरटी
    • संस्करण : 2022

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