Font by Mehr Nastaliq Web

पारपत्र

parapatr

अनुवाद : उत्पल बैनर्जी

सुकांत भट्टाचार्य

अन्य

अन्य

और अधिकसुकांत भट्टाचार्य

    आज रात जिस बच्चे ने जन्म लिया

    उसी से ख़बर मिली

    कि उसे मिला है एक पारपत्र,

    और इसलिए वह नए संसार के द्वार पर

    जनमते ही तीव्र चीत्कार में

    अपना अधिकार जताता है

    छोटी-सी देह बेबस, फिर भी मुट्ठी भींचे हाथ

    जाने किस गूढ़ प्रतिज्ञा में

    ऊपर की ओर उठे दीखते हैं।

    वह भाषा कोई नहीं समझ पाता

    कोई हँसता है तो कोई हल्के-से झिड़क देता है,

    लेकिन मैंने मन ही मन समझ ली है वह भाषा,

    आने वाले ज़माने का पैग़ाम मिला है मुझे

    नवजात शिशु की धुंधली कुहासे भरी आँखों में

    उसका परिचय-पत्र पढ़ रहा हूँ।

    आया है नया शिशु

    उसके लिए छोड़ देनी होगी जगह,

    पुरानी दुनिया में

    बेकार और मरे हुए मलबे के ढेर पर से

    हमें चले जाना होगा।

    चला जाऊँगा—

    लेकिन आज जब तक प्राण हैं इस देह में

    जी-जान से हटाऊँगा पृथ्वी के सारे जंजाल,

    संसार को इस शिशु के रहने योग्य बनाकर जाऊँगा मैं—

    नवजात के लिए यह मेरी दृढ़ प्रतिज्ञा है।

    अंत में सारे काम निबटाकर

    अपनी देह के रक्त से नए शिशु को

    दे जाऊँगा आशीर्वाद

    इसके बाद तो फिर सारा कुछ इतिहास है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मैंने अभी-अभी सपनों के बीज बोए थे (पृष्ठ 23)
    • रचनाकार : सुकांत भट्टाचार्य
    • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
    • संस्करण : 2006

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए