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मधुमय धरती की धूल

madhumay dharti ki dhool

रवींद्रनाथ टैगोर

अन्य

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रवींद्रनाथ टैगोर

मधुमय धरती की धूल

रवींद्रनाथ टैगोर

और अधिकरवींद्रनाथ टैगोर

    मधुमय है यह द्युलोक, मधुमय इस धरती की धूल—

    हृदय में धारण कर लिया है मैंने

    यह महामंत्र

    चरितार्थ जीवन की वाणी।

    दिन-दिन सत्य का जो उपहार पाया था

    उसके मधुरस का क्षय नहीं।

    इसीलिए मृत्यु के अंतिम छोर पर गूँजती है यह मंत्र वाणी—

    सभी क्षतियों को मिथ्या करके अनंत का आनंद विराजता है।

    धरणी का अंतिम स्पर्श लेकर जब जाऊँगा

    कह जाऊँगा ललाट पर मैंने तुम्हारी धूल का तिलक लगाया है,

    दुर्दिन की माया की आड़ में मैंने नित्य की जोत देखी है

    सत्य के आनंद रूप ने इस धूल में आकार लिया है

    यही जानकर इस धूल में अपना प्रणाम रख जाता हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रवींद्रनाथ की कविताएँ
    • रचनाकार : रवींद्रनाथ टैगोर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1967

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