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द्वंद्व

dvandv

अनुवाद : उपेंद्रकुमार दास

तुलसी दास (कुमारी)

अन्य

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और अधिकतुलसी दास (कुमारी)

    संध्या-तारा आकाश मे ऊँघता है, उतरती आती है नील मेघ रात्रि

    अमावस के गहन अंधकार तले, शोभा बिखेरती है सौदामिनी छाती

    स्वप्नातुर प्रभंजन के बंदरगाह में वज्र पढ़ता है प्रलय मंत्र

    ईथर के निष्प्राण स्नायु में झंझावात करता है अकारण गश्त

    फुटपाथ की भीड़ कम हो आती है, शीत पैदा करता है स्वप्न के कंपन

    आयुष्मती कृष्णा रजनी की बेणी के खुल जाते है बंधन

    पूतिगंध आमंथरायन से सर्वहारा का विकल क्रंदन

    उठाता है अंतर में लाखों प्रश्न, जीवन क्या मृत्यु का ईंधन?

    सृष्टि क्या, स्रष्टा का विलास! इतिहास क्या, बर्बरता जाया?

    मुक्ति केवल युक्ति का निर्यास, परंपरा उर्णनाभि माया?

    शासन क्या, शासितों का हत्यारा? वैभव क्या, अभाव मारक?

    गौरव क्या, रौरव का भूषण? धर्म केवल कोक-शास्त्र का गान?

    यौवन क्या, जघन्य फिसाद? सभ्यता क्या, अश्लील व्यंजना?

    शांति क्या, भ्राँति स्नेहाशीष? श्रम केवल कर्म की पीड़ा?

    सत्य क्या, सचमुच मिथ्या की छलना? यह मिट्टी क्या करोड़पति की क्रीता?

    नि:स्व का जन्म क्या, केवल कूर्म होना, अन्न-वस्त्र के बिना परिश्रम करना?

    जीवित रहना क्या, गोष्ठीगत स्वार्थ? इससे तो मृत्यु शुभ है श्रेयस्कर है

    द्वंद्व सरीसृप का होगा नाश, पहले होगी विश्व की क़ब्र?

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 72)
    • रचनाकार : तुलसी दास(कुमारी)
    • प्रकाशन : साहित्य अकादमी

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