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दुनिया चली गई आगे

duniya chali gayi aage

अनुवाद : दिनकर सोनवलकर

मंगेश पाडगाँवकर

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मंगेश पाडगाँवकर

दुनिया चली गई आगे

मंगेश पाडगाँवकर

और अधिकमंगेश पाडगाँवकर

    उस युग में

    घर-घर में गूँजते थे

    तुकाराम के अभंग

    सोये हृदयों में जागे थे पाण्डुरंग;

    ज्ञानेश्वर के छंद

    अमृत को करें पराजित;

    उर में उगाते थे

    अमृत रस के नव अंकुर

    अब सब-कुछ बदल गया:

    भाई रे, दुनिया चली गई आगे—

    भूलो वह गान पुरातन

    राधा-कृष्ण माता-पिता;

    अब तो हर होंठ पर

    लारे-लप्पा लारे-लप्पा।

    बहुत पुरानी है ये कहानी

    देख कर क्रौंच-वध

    बाल्मीकि की करुणा में

    उग आए छंद अनुष्टुप के;

    आख़िर किसलिए पुरानी बातें

    यार मेरे भूलो सब काव्य;

    अब तो जासूसी कथाओं का

    बढ़ता बाज़ार-भाव

    अब सब कुछ बदल गया

    भाई रे, दुनिया चली गई आगे—

    अब ऐसा कुछ लिखो रहस्यमय

    छह पन्नों में हो जाएँ ख़ून सात।

    उस प्रतिभा की स्तुति

    जिसके छूते ही

    जड़ पत्थर में

    साकार हुआ उर का स्पंदन;

    सात रंग का जादू

    वहाँ अजंता के पाषाणों में,

    मठ में वेरूल के

    सौंदर्य खड़ा है मूर्तिमान,

    अब सब कुछ बदल गया

    भाई रे, दुनिया चली गई आगे—

    नहीं चाहिए वेरूल या कि अजंता

    मूर्ति तोड़ दो या फोड़ दो

    अभिनेत्री की मोटर के आगे

    जुड़ता समूह अब लाखों का।

    कल पढ़ा कहीं

    कोई निकला पदयात्रा पर

    भूमिदान लेने को

    कहता है वह

    आत्मा की ताक़त से

    लाऊँगा शांति जगत् में

    कहता है

    प्रेम के गर्भ में ही छिपी है सब क्रांति,

    अब सब कुछ बदल गया

    भाई रे, दुनिया चली गई आगे—

    बेकार भला क्यों

    लगे गर्द इन पैरों में?

    चलो लगाएँ टिकिट-घरों के सम्मुख क्यू

    अब संस्कृति याने रेशम का बुशकोट

    जिस पर अंकित हों हाथी घोड़े ऊँट।

    अब संस्कृति याने

    लाल रँगे वे होंठ

    अब संस्कृति याने

    केवल प्रचार औ' विज्ञापन;

    अब सब कुछ बदल गया

    भाई रे, दुनिया चली गई आगे—

    भव सागर से पार उतरने

    मंत्र एक जप भाई

    लारे-लप्पा लारे-लप्पा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि संकलन कविता मराठी (पृष्ठ 124)
    • रचनाकार : मंगेश पाडगाँवकर
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1965

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