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दु:स्वप्न

duhaswapn

प्रतिभा कटियार

अन्य

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प्रतिभा कटियार

दु:स्वप्न

प्रतिभा कटियार

पीछे कुछ अनजाने लोग थे

उनके हाथों में थे हथियार

वो मुझे नहीं जानते थे

मैं भी उन्हें नहीं जानती थी

वो मुझे मारना चाहते थे

क्यों मारना चाहते थे

ये वो जानते थे

मैं जानती थी

यह बात तो कोई और ही जानता था

हथियारों से लैस उस भीड़ से बचकर भागते हुए

अचानक टकरा गई अपने प्रेमी से

साँस में आई राहत की साँस

छलक पड़ीं आँखें

पीड़ा और सुख दोनों से एक साथ

कि उसने कहा था

वो मुझे दुनिया के हर दुःख से बचाएगा

आँच नहीं आने देगा मुझ पर

छुप गई उसके पीछे जाकर

भीड़ थमी

भीड़ के कुछ चेहरे मुस्कुराए

अचानक मेरा प्रेमी सामने से हटते हुए बोला

'ले जाओ इसे'

उस रोज़ पहली बार

प्रेमी का धर्म मालूम हुआ

इसके पहले तक प्रेम ही था

हम दोनों का धर्म

क़त्ल होने से पहले मैंने महसूस किया

कि अब मुझे भीड़ के हाथों

क़त्ल होने का दुःख नहीं

दुःख था प्रेम के धार्मिक हो जाने का

मुझे भीड़ ने नहीं प्रेम ने मारा

और हमारे बीच जो प्रेम था

उस प्रेम को किसने मारा

स्रोत :
  • रचनाकार : प्रतिभा कटियार
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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