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दूर से अपना घर देखना चाहिए

door se apna ghar dekhana chahiye

विनोद कुमार शुक्ल

विनोद कुमार शुक्ल

दूर से अपना घर देखना चाहिए

विनोद कुमार शुक्ल

दूर से अपना घर देखना चाहिए

मजबूरी में लौट सकने वाली दूरी से अपना घर

कभी लौट सकेंगे की पूरी आशा में

सात समुंदर पार चले जाना चाहिए

जाते-जाते पलटकर देखना चाहिए

दूसरे देश से अपना देश

अंतरिक्ष से अपनी पृथ्वी

तब घर में बच्चे क्या करते होंगे की याद

पृथ्वी में बच्चे क्या करते होंगे की होगी

घर में अन्न-जल होगा कि नहीं की चिंता

पृथ्वी में अन्न-जल की चिंता होगी

पृथ्वी में कोई भूखा

घर में भूखा जैसा होगा

और पृथ्वी की तरफ़ लौटना

घर की तरफ़ लौटने जैसा।

घर का हिसाब-किताब इतना गड़बड़ है

कि थोड़ी दूर पैदल जाकर घर की तरफ़ लौटता हूँ

जैसे पृथ्वी की तरफ़।

स्रोत :
  • पुस्तक : कवि ने कहा (पृष्ठ 16)
  • रचनाकार : विनोद कुमार शुक्ल
  • प्रकाशन : किताबघर प्रकाशन
  • संस्करण : 2012

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