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मैं बनाम मैं

main banam main

अनुवाद : विजय वर्मा

केहरि सिंह मधुकर

अन्य

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केहरि सिंह मधुकर

मैं बनाम मैं

केहरि सिंह मधुकर

मेरी सभ्यता

मेरी तहज़ीब

मेरी जाति-पाति अपनी।

मेरा रंग-रूप

मणि मेरी

मेरा मस्तिष्क

मेरा पागलपन अपना॥

मेरे पाँवों की बेड़ी यह।

मेरे हाथों की ज़ंजीर यह।

और इस सीप में

मोती नहीं

नरक भोगता कीड़ा है।

कभी

चाँद की कोखो में

कभी

सोने की गर्भों में

कभी

अग्नि की रंगत-सी

ताँबें की धातु-जैसी

जलती तपिश।

कभी गौओं की गिनती से

कभी गाँव-गाँव के साथ

और

टाँके की मुद्राओं से

बना रंग-रूप मेरा॥

इन तानों और बानों ने

मेरी औक़ात को तोला

मेरे रुतबे की बोली हेतु।

मैं मानव नहीं।

मनुपुत्र से इस कारण

मेरा कोई भी नाता नहीं।

मैं बंदी हूँ

जाति का।

भूगोल की सीमाबंदी का।

यह मेरा बंदीगृह है॥

स्रोत :
  • पुस्तक : आधुनिक डोगरी कविता चयनिका (पृष्ठ 137)
  • संपादक : ओम गोस्वामी
  • रचनाकार : केहरि सिंह मधुकर
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2006

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