Font by Mehr Nastaliq Web

कविता

kawita

अनुवाद : जितेन्द्र उधमपुरी

यासीन बेग

अन्य

अन्य

यासीन बेग

कविता

यासीन बेग

मैं डुग्गर का गीतकार हूँ,

डुग्गर देश का हर गोशा,

मेरी लय का शीशा।

इस धरती के पत्थर-पर्वत,

दूर ऊपर आकाश में उड़ते बादल,

कोस-कोस पर कंढी प्यासी,

लंबे सफ़र,

चील, बनेसर, आम, फलाही

तलवार की धार पर

चलते-चलते उमर बीत गई

पर किसी भी सोच का हुआ अंत

गीत अति कोमल

मैं डुग्गर का गीतकार हूँ

आज भी पर्वतों की गोद में

ज़ुल्म कुकरमुत्ता-सा

स्वयं उगता।

बैल खो गए, बुगदु छीना

सूद कभी नहीं चुकता

कुम्हार की कच्ची मिट्टी

ताने-बाने, उलझाव, लकीरें

जीवन एक पहेली जिसे

कौन बूझे, कौन जाने

मैं डुग्गर का गीतकार हूँ

कचनार के पेड़-सी

थर-थर काँपती नार छबीली

बावड़ी-बावड़ी पानी भरती

रूप, यौवन, धूप-तमाशा

दूर मायका

अश्रु-अश्रु मरता सूखता

कांत कहीं परदेस में फिरता

कौन पूछे, कौन मन की जाने

मैं डुग्गर का गीतकार हूँ।

छाँव पीपल की,

दूर कहीं पंचों की बैठक

छोटे-छोटे गुनाहों के बदले

झाड़, सज़ा

उसके खेत में पानी लगता

हम नहीं मानते,

पेड़ों के अंदर साँप, नेवले

एक-दूसरे की जिह्वा चाटते

मैं बोलूँ तो पापी कहाऊँ,

इस धरती के पंच सयाने

मैं डुग्गर का गीतकार हूँ।

बनेसर : देवदार और उसकी जाति के पेड़ों को छोड़ दूसरे पेड़ों की लकड़ी।

फलाही : डुग्गर का एक प्रसिद्ध पेड़ जिसकी दातुन काम आती है।

बुगदु : मशीन में चावलों को पॉलिश करते समय निकलने वाला आटे जैसा पदार्थ।

स्रोत :
  • पुस्तक : आधुनिक डोगरी कविता चयनिका (पृष्ठ 154)
  • संपादक : ओम गोस्वामी
  • रचनाकार : यासीन बेग
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2006

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY