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दिव्य नाश्ता

diwy nashta

असद ज़ैदी

असद ज़ैदी

दिव्य नाश्ता

असद ज़ैदी

बरेली के एक घर में इतवार के दिन अलस्सुबह

एक गृहिणी मन लगाकर बना रही है कोई नाश्ता

निकल रही है अनोखी ख़ुशबुएँ

मिली हैं जैसे वहाँ कुछ आसमानी चीजें

इससे बेख़बर पति चल दिया है स्टेशन की तरफ़

मुझे लेने : रास्ते में रुककर वह ख़रीद रहा है

कुछ सिगरेट—उसे क्या पता मैं अब सिगरेट नहीं पीता—

और कुछ इधर-उधर की चीज़ें : कंघी, नया साबुन,

कछुआ छाप मच्छर अगरबत्ती...

और ख़बर नहीं मैं उस गाड़ी से नहीं रहा

और किसी भी गाड़ी से नहीं रहा

बल्कि बैठा हूँ अपना मनहूस चेहरा लिए

दिल्ली के बीचोंबीच, अपने पलंग के किनारे पर

आधी नींद और आधी जाग के दरम्यान झूलता हुआ

एक औरत बना रही है ऐसा कोई नाश्ता

पहले कभी जो उस घर में नहीं बना

और बाद में कभी नहीं बनेगा

जो बात आज है फिर नहीं पाएगी

यह नुस्ख़ा हमेशा के लिए खो जाएगा

मेरा फ़ोन वहाँ पहुँचता है

मेरी आवाज़ सुनकर गृहिणी बोलती है

—उसकी आवाज़ में एक

सम्हली हुई चहक और एक भूली हुई नफ़ासत है—

‘अच्छा, तो आप गए! ये आपको

स्टेशन पर नहीं मिले?’

और जब मैं कहता हूँ : ‘देखिए, मैं दिल्ली ही में हूँ,

मुझे अपना सफ़र मुल्तवी करना पड़ा...'

तो सुनकर वह इंतज़ार करती है जैसे

अभी कुछ और सुनना बाक़ी हो

या मैंने चीनी ज़बान में कुछ कहा और अब

कोई दुभाषिया उसका हिंदी में अनुवाद करेगा

‘कि मैं बहुत माफ़ी चाहता हूँ'

सुनकर वह सिर्फ़ एक लफ़्ज़ बोलती है : अच्छा!

एक नाश्ता, खाने के लिए जिसे चाहिए

अच्छा दिल और अच्छी रूह

एक नाश्ता, खाकर जिसे पुनर्जन्म की कामना जाग उठे

एक नाश्ता जिसकी ख़ूबियों का तौल

गैरहाज़िर मेहमान की बदनसीबी से कुछ ज़्यादा ही हो

यों ही ठंडा पड़ जाएगा

उस नाश्ते पर पड़ेगी निराशा की छाया

उस पर ढँक जाएगी उदासीनता की चादर

उड़ जाएगा उसका रंग

निकल जाएँगी उसकी ख़ुशबुएँ

बदल जाएगा उसका स्वाद

एक हैरान और परेशान मर्द घर लौटकर आएगा

तो एक ख़ामोश और ख़फ़ा औरत उसे चंद लफ़्ज़ों में

हाल बताएगी

उनकी तबीअत पता नहीं क्या करने की होगी

कुछ अजीब से ख़याल गुज़रेंगे उसके दिमाग़ से

—ऐसे ही होती हैं कुछ चीज़ें ख़राब, ऐसे ही

आते और जाते हैं कुछ लोग

क्या होगा उस नाश्ते का?

मुझे यक़ीन है वह फिंकेगा नहीं, दो-तीन प्राणी

बेआवाज़ बुतों की तरह बैठे

उसे खा ही लेंगे धीरे-धीरे

यह एक नाश्ते की बरबादी की ही कहानी है बस

जो एक बुरे फ़ैसले से शुरू होती है

और एक बुरे फ़ैसले पर होती है ख़त्म

इसके कुछ सूत्र ऐसे हैं जो लटके रहेंगे

अब हमेशा अधर में।

स्रोत :
  • पुस्तक : सरे−शाम (पृष्ठ 247)
  • रचनाकार : असद ज़ैदी
  • प्रकाशन : आधार प्रकाशन
  • संस्करण : 2014

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