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दिल्ली और दलदल

dilli aur daldal

ओम् प्रकाश आदित्य

ओम् प्रकाश आदित्य

दिल्ली और दलदल

ओम् प्रकाश आदित्य

जल में भी रहके जल लगता था कभी,

कीचड़ लगी है अब ऊपर कमल में,

बल रहता था बाहुओं में या कि आत्मा में,

बल बसता है अब नेताओं के छल में,

कव्वे ने उल्लू से कहा उल्लुओं में क्या रखा है

हंस कर दूँगा तुझे रहा है नीचे रसातल में।

दलदल पर खड़ी दिल्ली हँसती है और,

देश धँसा जा रहा है नीचे रसातल में।

स्रोत :
  • पुस्तक : हास्य-व्यंग्य की शिखर कविताएँ (पृष्ठ 78)
  • संपादक : अरुण जैमिनी
  • रचनाकार : ओम् प्रकाश आदित्य
  • प्रकाशन : राधाकृष्ण पेपरबैक्स
  • संस्करण : 2013

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