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देश ने हमें आज तक कोई...

desh ne hamein aaj tak koi

अनुवाद : उत्पल बैनर्जी

शंख घोष

अन्य

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शंख घोष

देश ने हमें आज तक कोई...

शंख घोष

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    जंगल के बीचोंबीच कटे हाथ आर्त्तनाद करते हैं

    गारो पहाड़ के क़दमों में कटे हाथ आर्त्तनाद करते हैं

    सिंधु की धार में कटे हाथ चीख़ते हैं दर्द से

    कौन किसे अब क्या समझाए

    समुद्र में गए हो, उसकी लहरों के शीर्ष से

    हज़ार-हज़ार टूटी हड्डियाँ

    मेड़ के भीतर हज़ारहा टूटी हड्डियाँ

    शिखर और गुंबदों से हज़ार-हज़ार टूटी हड्डियाँ

    तुम्हारी आँखों के सामने कूदकर दर्द से चिल्लाती हैं

    समवेत स्वरों से सारी आवाज़ों का मिला हुआ

    अछोर कंठहीन समवेत स्वर

    अपने धड़ को ढूँढ़ता आर्त्तनाद करता है

    शून्य में पंजा मारकर वे उखाड़ लेना चाहते हैं हृदय

    नष्ट हो चुकी प्रतिभा के नृत्य में

    उँगलियों के पास आकर उँगलियाँ आर्त्तनाद करती हैं

    पानी के भीतर या फिर बर्फ़ीली चोटियों पर

    अब कौन किसे क्या समझाए

    अर्थहीन शब्द आर्त्तनाद करते हैं

    और तुम स्तब्ध होकर सुनते रहते हो

    देश ने हमें आजतक कोई

    देश ने हमें आजतक कोई

    देश ने हमें अभी तक कोई मातृभाषा नहीं दी है!

    स्रोत :
    • पुस्तक : छंद के भीतर इतना अंधकार (पृष्ठ 125)
    • रचनाकार : शंख घोष
    • प्रकाशन : सेतु प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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